Tuesday 18 July 2017

Mission mohbatt

दोस्तों आज की कहानी का नाम है I hate Bareli

करीब रात के बारे बजे दिल्ली बरेली पस्सेंजर खुल चुकी थी और सुपरमैन की तरह ट्रेन पकड़ने में मेरी  कोई दिलचस्पी नहीं है पर अक्सर हम उन ही चीजों का सामना करते हैं जिनमें हमारी कोई दिलचस्पी नहीं होती और आज में लेट हो गया था ट्रेन तो छुटके-छुटके बच गईं थी पर अब इस भारी बैग को खीचते हुए जान निकल रही थी आखिर बैग भरी  होना भी क्यों न था एक तो Invertis university का ऑडिट और दूसरा अपनीं सबसे प्यारी दोस्त का निकाह (अभी तक ये तय नहीं हुआ की वो निकाह किसके साथ होगा ) कुछ देर की मशक्कत के बाद में ख़ाली सीट मिली और मै बैठ गया और ऑफिस के पेंडिंग काम निपटाने लगा, देखो सुबह तक सारी रिटर्न्स भेज देना और ये कह कर मैने फ़ोन काट दिया, सामने देखा को एक अंकल बैठें मुस्करा रहे थे बेटा बरेली जा रहे हो, बरेली में ही रहते हो, किस जगह,  त्रिवती नाथ मंदिर के पास या आला हज़रत दरगाह के पास ! मै भी बरेली ही रहता हू, वो अंकल पाँव मोड़ते हुए ग़पे हाकने की मुद्रा में बैठ गए, जी नहीं मै पहली बार बरेली जा रहा हु, मेरे सपाट जवाब सुनकर हिचकिचा गए थे शायद! पर इस बार मोर्चा बगल में बैठीं बूढी औरत ने संभाल लिया था देखना बीटा तुम्हे बड़ा मजा आएगा हमारे बरेली की तो बात ही निराली है जिस बात का ड़र था वही हुआ वो दोनों लोग बरेली की पोटली खोल कर बैठ गए पर उनका क्या पता था बरेली के लिए मुझे कोई उत्सुकता नहीं है बल्कि मुझे तो नफरत है इस बरेली से, आप सोच रहे होंगें न कोंन है ये बतमीज लड़का, अब आप ही सोचिये न college के दिनों से आपको बरेली के बारे में बताया जाये फिर ऑफिस में तारीफों में सिर्फ और सिर्फ वही बरेली अब आप ही बताईये न इतना सुन कर या तो आपको प्यार होगा या इंकार, मुझे इंकार हुआ हुआ था जो धीरे धीरे नफरत का रंग ले चूका था, खैर मुझे क्या पता था ये नफरत वाली फीलिंग और और नफरत वाली होने जा रही थी अगली सुबह जब में उठा तो गाड़ी बरेली पहुच चुकी थी मै अपना बैग लेने के लिए नीच झुका तो जैसे बिजली को ज़ोरदार झटका लगा बैग वह नहीं था, मेरा बैग गायब था,  काफ़ी   देर  बैग ढूढने की नाकाम कोशिश के बाद में तमतमाया हुआ रेलवे रिज़र्व फाॅर्स के पास पहुचा इसी बीच वही मेरी सबसे प्यारी दोस्त के भाईजान आ चुके थे और थोड़ा सा गर्मागर्मी के बाद हम लोग लोग कार में बैठ कर घर के लिए निकल पड़े इसी बीच मेरी नज़र सबसे प्यारी दोस्त पर पड़ी जो अब आईएस बन चुकी है, न जाने उसकी इस आईएस के पीछे कितना संघर्ष रहा है ,आज करीब तीन साल बाद मिला हू इस पागल से, जो एक दिन भी नहीं रह सकती थी मेरे बिना, दिल करा वही गले लगा लू लकिन भाईजान, ये मोह्बात college में बिताये तमाम् अच्छे बुरे पलों की थी, आज में उस लड़की के पास बैठा था जिसे कम मार्क्स आने पर गले लगा लगा कर संभाला, जिसके साथ college के लेक्चर बंक मारे!
खैर इसी सोच विचार के बिच हम तिलहर पहुच चुके थे, निकाहनामा 6 दिन बाद है, नास्ता ले कर मै ऑडिट के लिए निकल चूका था इसी बीच मेरे आर्टिकल भी यूनिवर्सिटी पहुच चुके थे, 2 दिन वही काम निपटाने के बाद में निकाह में शामिल होने बरेली पंहुचा और पहली बार इस्लाम की रीती रिवाज के हिसाब से निकाह देखने का अवसर मिला

आगें का हाल बताता हू निकाह में से आने के बाद ......

Thursday 5 January 2017

The Perfect couple

The Perfect Couple


पंजाब के छोटे से क़स्बे में पड़ने वाले उस स्कूल में पढने वाले उन 12 साल के बच्चों को क्या पता था कि आज से 6 साल बाद उन्हें The Perfect couple बुलाया जायेगा, कुछ यू ही शरू हुआ था दोस्ती का वो सफ़र गंगा स्कूल की आन बान शान - topper, वही दूसरी तरफ विवेक - आवारागर्दी में न. 1, क्लास का सबसे बेकार लड़का, आज फिर से दोनों की लड़ाई हुई! गंगा विवेक की Insult नहीं देख पाती थी शायद कुछ था उन दोनों में जिसे एहसासों में बयान किया जाना बाकि था, धीरे धीरे समय बीतता गया और वो एक दुसरे के हाथों में हाथ डालकर धुमना, घंटो वो स्कूल के पीछे बैठें रहना और एक बार प्रिंसिपल के द्वारा पकड़ लेना, यही वो समय था जब वो दोस्ती दोस्ती नहीं रहने वाली थी वो एहसास अब हीर रांझे, लेला मजनू की तरह होने वाले थे उसी वक्त गंगा  ने तय कर लिया था कि अब ये दोस्ती..... दोस्ती नहीं रहेगी अब ये प्रेम होगा, love- love होगा 

गंगा ने उसी पल विवेक को मैजिकल शब्द "I Love You" बोला आप सोच रहे होंगे न कितनी बेशर्म है अपनी गंगा, नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है वो भी शरमाती है, इत्तलाती है, लजाती है पर कुछ अलग होता है दो आत्माओं के मिलन में, पर विवेक ने वो Proposal ठुकरा दिया!
क्यों 

शायद यही गंगा भी पूछना चाहती थी, "में किसी और को चाहता हू" यही बोल पाया था विवेक ! समय बदला दोनों 12 वी क्लास  में आ चुके थे , एक ही क्लास में होने के बावजूद गंगा ने उससे कभी बात नहीं की वो गंगा  जो कभी  शरमाती, इत्तलाती, लजाती थी अब पत्थर बन चुकी थी, आज स्कूल का आखरी दिन है सब जितनी यादें  समेट सकतें समेटने की कोशिश में लगे हुए थे और वादा करते ही हम दुबारा मिलेंगे पर कौन जाने अब कहा,  इन्ही सब के बीच पत्थर की तरह मजबूत हो चुकीं गंगा के पास विवेक आकर रोने लगा इस समय  विवेक का हाथ गंगा  के हाथ में था गंगा अपने आप को रोक न सकी और शायद इस बार वो आपने आप को रोकना भी नहीं चाहती थी दोनों खुब लिपट कर रोएं

कम्भख्त 

उसी वक्त ये गाना बजना था
"लग जा गले के फिर ये, हसीं रात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो"
जब तक ये गाना खत्म नहीं हुआ वो दोनों लिपट कर रोते रहे! आज बोर्ड की परीक्षा का रिजल्ट है और विवेक की परीक्षा, परीक्षा इस बात की कि गंगा उसे स्वीकारेगी ....हा गंगा ने हां किया 

आज गंगा दिल्ली शहर में जा रही है दिल वालोँ की दिल्ली में और विवेक चंडीगढ़

 ..... क्या होगा इनका क्या ये दोनों दुबरा मिल पाएंगें

बताऊंगा जल्द ..........